नाम के पुजारी,शिक्षादानी,कहिनी और करनी के पुरे ,मानवतावादी ,कर्मयोगी
श्री सतगुरु ब्रह्म नंद जी महाराज भुरीवाले
संत महापुरषों का जीवन लोग भले को समर्पित माना गया है | उन की हर क्रिया दूसरों के भले के लिए होती है | आचार्य श्री गरीबदास बाणी में फरमान करते है "गरीब ,वृक्ष ,नदी और साधू जन, तीनों का एक ही स्वभाव होता है जल नहावे ,फल वृक्ष दे साधू लखावै दाव " बाणी का यह फरमान महाराज भुरीवालो की गुर्गाद्दी के तीसरे ब्रह्मलीन गद्दी नशीन सतगुरु श्री ब्रह्मानंद जी भुरीवालो पर पूरी तरह सिद्ध होता है क्योंकि उन्होंने आपने जीवन काल में चाहे गृहस्थ हो या अधियात्म्क मार्ग हो दूसरों को सुख देने का यतन ही नहीं किया बल्कि उसे कर दिखाया | सतगुरु श्री ब्रह्मानंद जी भुरीवाले अक्सर ही अपने प्रवचनों में कहा करते थे की
" चार बेद को खोज के बात मिली है दोये ,सुख देवे सुख होत है , दुःख देवे दुःख होये "
भले ही उन्हें खुद अनेकों कष्ट भोगने पड़े परन्तु आप ने दूसरों को सुखी बनाने का कार्य अपने जीवन के अंतिम पलों तक जारी रखा | सांसारिक जीवों को आत्मिक सुख देने के लिए "नाम अभ्यास पर जोर दिया , सांसारिक सुख देने के लिए शिक्षा संस्थान , सेहत केंद्र ,नशो के विरुद्ध जागरूकता ,गृहस्थ जीवन में सदाचारी के उपदेश पर बल देने के साथ साथ जहां आप सादगी में रहे वहा दूसरों को सादगी भरा जीवन जीने की लगातार प्रेरणा देते रहे | आप प्रवचन करते हुए बहुत ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए सत्संग करते थे | आप जहाँ बाणी सद ग्रंथो पर अमल की प्रेरणा करते हुए कहा करते थे ...
"कोई तन दुखी कोई मन दुखी , कोई चित उदास , थोड़े थोड़े सभ दुखी सुखी राम का दास "
इस अध्यात्मिक रहनुमा का अवतार जिला शहीद भगत सिंह नगर की तहसील बलाचौर के गांव चुह्डपुर (ब्रह्मपुरी ) में सन १९१२ को पिता श्री धनीराम जी के घर माता श्रीमती राम देयी की सुभागी कोख से हुआ | पर आप ने आपनी कर्म भूमि उत्तर प्रदेश के जिला नैनीताल की तहसील राम नगर को बनाया | गृहस्थ जीवन में भी आप का समाज में सत्कार तथा सामाजिक रुतबा था | सैकडो एकड जमीन के मालिक तथा अच्छा समाजिक रुतबा होने के बावजूद भी सरदार गिरधारी सिंह की आंतरिक भावना कुछ और प्राप्त करने की जाग उठी | इस भावना के उत्पन होने के पीछे उच्चकोटी के महापुरुष महाराज लालदास भूरी वालों का सत्संग तथा उनकी रूहानियत का प्रभाव था जो कि आप के दिक्षा गुरु थे | महाराज लालदास भुरीवाले आप जी के फार्म हाउस में आया करते थे | उनके आशीर्वाद के तहत सन १९६२ के जून महीने में उत्तर प्रदेश के जिला बुलंद शहर के क़स्बा जगीराबाद की कूटीया में सन्यास धारण करके सरदार गिरधारी सिंह से स्वामी ब्रहमानंद के रूप में संगत में विचरे | सतगुरु श्री ब्रह्मानंद भुरीवाले गऊ , गरीब तथा कन्या की रक्षा तथा भलाई के पूर्ण हामी थे | इस बात का आप ने सिर्फ प्रचार ही नहीं किया बल्कि इस को करनी में भी बदलते हुए इस पर पूरा अमल करके दिखाया | १४ अगस्त १९७५ को सतगुरु श्री लालदास जी के पंच भौतिक शारीर त्याग जाने के पश्चात उनकी इच्छा तथा वचनों के अनुसार हरिद्वार के ब्रह्म निवास आश्रम में षट - दर्शन साधू समाज , गरिबदासीय संम्प्रदाय की सर्वउच्च पीठ के उस समय के पीठाधिश्वर श्री महंत गंगा सागर तथा भुरीवाले भेष के समुचे संतो द्वारा संगत के विशाल इक्टठ में आप जी को इस गुरुगदी के तीसरे गद्दी नशीन बनाया गया | सत्गुरु श्री ब्रहमानंद भूरीवालो ने जहां धर्म के अनेकों सत्म्भ स्थापित करके लोगों को धर्म मार्ग से जोड़ा वही सन १९८४ में समाज को उचा उठाने के लिए शिक्षा के प्रचार व् प्रसार हेतु "महाराज भुरीवाले गरिबदासीय एजुकेशन ट्रस्ट " का गठन किया आप १ मई २००२ को आपने पंच भौतिक शारीर का त्याग करते हुए लालपूरी धाम भवानीपुर बीत (होशियारपुर) में ब्रह्मलीन हो गए | ४ मई २००२ को हरिद्वार में आप के पार्थिव शारीर को श्री महंत दया सागर जी मेहरबान जी की अगवाई में विशाल मात्मी जलूस के साथ रवाना हुआ जिस में संतो महापुरषों तथा बड़ी संख्या में संगतो के अतरिक्त उत्तराखंड के मुख्य मंत्री भी शामिल हुए और भागीरथी के घाट पर आप को जल समाधी दी गई | आप ने आपने जीवन काल में ही सन १९९२ में आपने शिष्य संतो में से वेदांत आचार्य स्वामी चेतना नंद जी भूरीवालो को इस गुरुगद्दी का चौथा गद्दी नशीन के तौर पर अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था जो कि वर्तमान समय में संगतो की रहनुमायी कर रहे हैं |
सुधार :-
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महाराज भुरीवालो के चौथे गद्दीनशीन वेधांत आचार्य स्वामी चेतना नन्द जी भुरीवालो जी के वास्तविक सहयोग से २ नवम्बर २००७ को गाव कलार से दून में स्थित गाव टिब्बा नंगल के लिए सड़क का निर्माण करवाया गया जिसका उद्गघाटन माननीय मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बदल ने किया, जहाँ उन्होंने महाराज ब्रह्मानंद जी भुरीवालो के लोकहित कार्यों की सराहना करते हुए इस सड़क का नाम श्री सतगुरु ब्रह्मा नन्द जी भुरीवाले मार्ग रखा तथा इसे जल्द ही बलाचौर से बुन्गा साहिब जो की श्री आनंद पुर साहिब के पास है तक बड़ाने का निर्णय लिया |
श्री सतगुरु ब्रह्मा नन्द जी भुरीवाले मार्ग
ਸ਼੍ਰੀ ਸਤਿਗੁਰੂ ਬ੍ਰਹਮਾ ਨੰਦ ਜੀ ਭੂਰੀ ਵਾਲੇ ਮਾਰਗ
सत् साहिब जै बंदी छोड़