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श्री पूज्य पाद प्रात : स्मरणीय  सतगुरु कबीर साहिब जी महाराज

गरीब शब्द स्वरूपी उतरे , सतगुरु सत कबीर I

श्री दास गरीब दयाल है  , डिगे बांधावे धीर II

भारत की पावन वसुंधरा पर समय -समय पर कारक महापुरषो का प्रादुभार्र्व हुआ जिनमे से एक अलौकिक महापुरश श्री सतगुरु कबीर साहिब जी का प्राकटय भी अद्वितीय  है

पानी से पैदा नही , शवासा नही शारीर

अन्न अहार करता नही ,ताका नाम कबीर 

                                                आपका दिव्य जन्म विक्रम संवत १४५५ ज्येष्ट मास की पूर्णिमा दिन सोमवार को काशी (बनारस) के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर प्रगट हुआ और नीरू नीमा नाम के जुलाहे दम्पति को प्राप्त हुए I काशी नगरी प्राचीन काल दे ही शिक्षा ,कला , भक्ति व् ज्ञान का केंद्र  तीर्थ है , काशी को बनारस तथा वाराणसी के नाम से भी पुकारा जाता है  I

                                                आप का  लालन -पालन नीरू नीमा ने बड़े ही प्रेम से किया  I आप बचपन से ही दिव्या चमत्कार दिखाने लगे ,एक बार काजियो ने नीरू जुलाहे को बुलाया और उसे बहका दिया कि या बालक अशुभ है  I हमने कुरान देखा है , यह बालक तेरा नाश करेगा तथा खुदा का गुनहगार है  I इससे खुदा तेरे से नाखुश है , तू अपना भला चाहो तो इस बालक को मार दे  I

                                                    काजियो के कहने दे नव- शिशु सतगुरु कबीर साहिब जी को एकांत में ले जाकर छुरी से काटने लगा लेकिन आप तो छुरी दे मारने से पहले लोप हो गये  I नीरू जी इस चमत्कार को देख कर घबरा गये अन्तोगत्वा नीरू ने आप ने छमा मांगी  I नीरू सतगुरु कबीर साहिब जी के प्राकट्य को जान गये  I आगे चल कबीर साहिब जी ने हमारे देश को ही नही बल्कि दुनिया को अपनी अगम कि वाणी दे प्रभावित किया  I आपने पाखंड दम्भी , अम्लाहारी लोगो को जोरदार शब्दों में भत्सर्ना कि आपने हिंदू , मुस्लिम को आपने कड़ी वाणी द्वारा फटकारा  I

मगहर के संबंध में पोराणिक भ्रान्ति फैली हुई थी   कि जो व्यक्ति मगहर में मरेगा वह गधे कि जुनी में जायेगा  I मगहर में रहने वाले लोग बड़े परेशान थे I मगहर के वासियों की शंका दूर करने के लिए कबीर साहिब जी ने यह घोषणा कर दी कि में आपना शारीर मगहर में छोडूगा I काशी के लोगों ने कबीर साहिब जी से पूछा आप ऐसा क्यों कर रहे है ? साहिब ने कहा कि यह आप लोगों का अज्ञान है , भ्रम है I भाग्वान का नाम लेने वाला व्यक्ति कहीं भी शारीर छोड सकता है I उसके  लिए वही काशी तुल्य होता है अत : कबीर साहिब ने कहा में अपना शारीर मगहर में ही छोडूगा और मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी वाले दिन निश्चित कर दिया I

अपने देहावसान के कुछ दिन पहले ही श्री सतगुरु कबीर साहिब जी काशी छोड़कर मगहर में रहने लगे I जैसे कि आचार्य गरीबदास जी महाराज ने भी कहा है :-

 

गरीब काशी मरे जाये मुक्ति को ,मगहर गधा होई I

पुरष कबीर चले मगहर को , ऐसा निश्वय सोई II

 

नियत तिथि के अनुसार हिंदू -मुस्लिम मगहर में श्री सतगुरु कबीर साहिब जी के पास इकटठे होने लगे समय आने पर संवत १५७५ मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन सबको दर्शन देकर सतगुरु कबीर साहिब जी चादर ओढ़ कर लेट गये सभी लोगों को आभास हुआ कि सतगुरु देव शारीर छोड़ गये है I जब दोनों पक्षों ने चादर हटा कर देखा तो नीचे फूल ही नजर आये I तब दोनों पक्षों ने आधे -आधे फूल लेकर श्री सतगुरु देव जी का स्मृति चिन्ह बना दिये जो हमे उनकी अनुभूति कि प्रेरणा देते है I