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।। अथ गुरुदेव का अंग ।।

गरीब, प्रपट्टन परलोक है, जहां अदली सतगुरू सार।
भक्ति हेत से ऊतरे, पाया हम दीदार ।।1।।

सब लोकों से उपर उŸाम लोक है, जिसे सत्यलोक कहते हैं। इस उŸाम लोक में अदली ;न्यायकर्ताद्ध पुरूष कबीर सत्गुरू विराजमान हैं, जो समस्त सृष्टि के सार हैं। संसार के प्राणियों के लिए भक्ति का हित करके सत्गुरू जी इस मृत्यु लोक में उतरे। ऐसे सत्गुरू का हमने दर्शन पाया।

गरीब, ऐसा सतगुरू हम मिल्या, अलल पंख की जात ।
काया माया ना उहां, नही पिंड नही गात ।।2।।

सत्गुरू कबीर साहब जी हमें इस तरह मिले, जिस तरह अलल पंखी ;अलल पक्षीद्ध अपने बच्चे को हित करके मिलता है। सत्गुरू जी हमें आकाश मंडल में मिले। उस लोक में पांच तत्वों का जड़ शरीर आदि नहीं है अर्थात् आत्म-तत्व के माध्यम से ही हमारा मिलन हुआ है।

गरीब, ऐसा सतगुरू हम मिल्या, उजल हिरंबर आदि।
भलका ज्ञान कमान का , घालत है सर सांधि ।।3।।

हमें अदली पुरूष कबीर, ऐसा सत्गुरू मिला जो प्रकाश रूप और निर्मल है। उस सत्गुरू ने हमारे मन में ज्ञान रूपी कमान उपर चढ़ा कर ऐसा बाण मारा जिससे समस्त कर्म-भ्रम नष्ट होकर मन में शुव प्रकाश प्रकट हो गया।

गरीब, ऐसा सतगुरू हम मिल्या, सुन्न विदेशी आप।
रूम रूम प्रकाश है, दीन्हा अजपा जाप ।।4।।

सत्गुरू जी कह रहे हैं कि हमें ऐसे सत्गुरू मिले, जो सुन्न ;शून्य द्ध देश ;सत्यलोकद्ध में रहते हैं। उनके रोम-रोम में प्रकाश है। ऐसे सत्गुरू देव जी ने हमें अजपा जाप का उपदेश दिया है जो बिना जपे ही हर समय रोम-रोम में से उच्चारण होता है।

गरीब, ऐसा सतगुरू हम मिल्या, मगन किये मुसताक।
प्याला प्याया प्रेम का, गगन मंडल गरगाप।।5।।

हमें ऐसे समर्थ सत्गुरू मिले कि उनके मिलने से हम संसार को भूल कर सत्गुरू जी के प्रेम में मस्त हो गए। उन्होंने हमें ऐसा प्रेम का प्याला पिलाया कि हमारी सुरति गगन मण्डल में लीन हो गई।

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